krishna janmashtami, कब, क्यों, मनाया जाता है

 

krishna janmashtami 2021: इसलिए मानते है

कृष्ण और राधा भारतीय जनमानस में कुछ इस तरह रचे बसे हैं कि इन्हें एक-दूसरे से अलग करके देखना संभव ही नहीं है, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रीकृष्ण, भगवान विष्णु के आठवें अवतार हैं, जिन्होंने द्वापर युग में जन्म लिया था. हिंदी साहित्य में राधा और कृष्ण के अमर प्रेम पर हर युग में बहुत कुछ लिखा गया है. साहित्य में कहीं कृष्ण और राधा के लोकमंगलकारी रूप को स्थान दिया गया है, तो कहीं माधुर्य भाव की भक्ति से ओत-प्रोत होकर सुंदर काव्य की रचना की गयी है. वैष्णव संप्रदाय में राधा को भगवान कृष्ण की शक्ति स्वरूपा भी माना जाता है, जो स्त्री रूप में प्रभु की लीलाओं में प्रकट होती हैं. 'गोपाल सहस्रनाम' के 19वें श्लोक में वर्णित है कि शिवजी द्वारा देवी पार्वती जी को बताया गया है कि एक ही शक्ति के दो रूप हैं राधा और माधव (श्रीकृष्ण). अर्थात राधा ही कृष्ण हैं और कृष्ण ही राधा है. भारत के धार्मिक संप्रदाय निबार्क और चैतन्य महाप्रभु ने भी कृष्ण और राधा को एक-दूसरे का पूरक माना है. .





दोनों एक-दूजे से अलग नहीं


कई शास्त्रों में माना गया है कि राधा और कृष्ण कभी अलग थे ही नहीं. वे दोनों एक ही थे. कृष्ण और राधा ने विवाह को प्रेम की चरमपरिणति नहीं माना, बल्कि प्रेम को ताउम्र जिया. एक-दूसरे के हृदय में जब वास हो जाये, तो हर सांसारिक औपचारिकता गौण हो जाती है. राधा एक सदानीरा नदी की तरह हैं, जो कृष्ण रूपी समुद्र में समा कर एकाकार हो जाती हैं.


राधा और कृष्ण के इस अपरिमित प्रेम की थाह लेना संभव ही नहीं है. अधिकांश पौराणिक आख्यानों के अनुसार किशोरावस्था में बिछड़ने के बाद कृष्ण और राधा की जीवन में कभी दोबारा भेंट नहीं हुई थी, लेकिन ब्रह्मवैवर्त पुराण में कुरुक्षेत्र में राधा और कृष्ण के चिर-प्रतीक्षित मिलन को आत्मा और परमात्मा के अलौकिक मिलन के रूप में निरुपित किया गया है


प्रियः सोअं कृष्णः सहचरि कुरुक्षेत्रमिलित स्तथाहं सा राधा तद्दिमुभयो संगमसुखम तथाप्यन्तः खेलन्मधुरमुरलीपञ्चमजुषे मनो में कालिंदीपुलिनविपिनाय स्पृहयति




प्रेम का लोकमंगलकारी रूप


राधा और कृष्ण के प्रेम पर हिंदी साहित्य के रीतिकाल केजन्माष्टमी विशेष 30 अगस्त


रससिद्ध कवि बिहारी ने एक कालजयी दोहा रचा, जिसमें राधा को लोकमंगलकारिणी देवी के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है. यहां तक की कृष्ण की निरंतर शोभायमान छवि का कारण भी राधा को ही बताया गया है. हिंदी साहित्य के रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि बिहारी का मानना है कि राधा के स्मरण मात्र से संसार की सारी बाधाओं का नाश हो जाता है


मेरी भव बाधा हरो, राधा नागरी सोई।
जा तन की झांई परत, स्याम हरित दुति हुई।


१. कृष्ण-राधा और अन्य गोपियों को घर की चहारदीवारी से बाहर निकलने को प्रेरित करते हैं. कृष्ण जब होली या किसी अन्य त्योहार में स्त्रियों को भागीदार बनाते हैं, तो इसकी पृष्ठभूमि में निहित उनके मंतव्य को भी समझा जाना चाहिए. कृष्ण ने ब्रजवासियों में जिस चेतना का संचार किया, वह सचमुच रुढ़ियों को भस्मसात करनेवाली थी.


सरलता का मार्ग


प्रेम की गली को भले ही 'अति सांकरी' कहा जाता हो, लेकिन सरल हृदय वालों के लिए यह मार्ग बहुत सरल हो जाता है. प्रेम की पीर के कवि घनानंद राधा और कृष्ण के अमर प्रेम को बहुत सुंदर शब्दों में अभिव्यक्त करते हुए लिखते हैं

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