दोस्तो इस आर्टिकल मे मैंने बताया है की वर्ण किसे कहते हैं, varn kise kahte hai तथा वर्ण विचार कि पूरी syllabus को complete किया है!
Table of contants
वर्ण किसे कहते हैं, varn kise kahte hai
वर्णमाला
वर्ण के भेद
स्वर वर्ण- परिभाषा एवं भेद
स्वरों के उच्चारण
स्वर-मात्रा एवं स्वर- व्यंजन संयोग
वारहखड़ी
व्यंजन वर्ण– परिभाषा एवं भेद
संयुक्त व्यंजन
तल बिन्दुवाले व्यंजन
वर्णों के उच्चारण स्थान अल्पप्राण और महाप्राण
घोष और अघोष
व्यंजन-गुच्छ एवं द्वित्व
अनुस्वार और पंचमाक्षर
अयोगवाह
अनुतान
बलाघात या स्वराघात
संगम
वर्ण
ध्वनि
लिपि और अक्षर
अभ्यास
वर्ण किसे कहते हैं, varn kise kehte hai
वर्ण - वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते हैं, जिसके खंड या टुकड़े नहीं हो सकते।
जैसे - अ, आ, इ, ई, ओ, कू, ख, च, छ, यू. र्, ल् आदि। अब कुछ शब्द या ध्वनियाँ लें और उनमें निहित मूल ध्वनि (वर्ण) कोसमझे।
जैसे— इस वाक्य में मुख्यतः दो शब्द या ध्वनियाँ सुनाई पड़ती है—'खा' और लो
‘खा लो।"
अब इसका खंड करे खा (एक शब्द / ध्वनि) खू+आ (दो मूल ध्वनियाँ / वर्ण)
लो (एक शब्द/ध्वनि) ल् + ओ (दो मूल ध्वनियाँ/वर्ण)
स्पष्ट है कि खा लो' में चार मूल ध्वनियाँ या चार वर्ण है, क्योंकि (ख. आ) तथा (ल, ओ) के और टुकड़े या खंड नहीं हो सकते। इसलिए इन्हें वर्ण या मूल ध्वनि कहते है। इससे यह भी ज्ञात होता है कि "भाषा की सबसे छोटी इकाई को मूल ध्वनि या वर्ण कहते हैं। य
वर्णमाला (Alphabet )
वर्णों के क्रमबद्ध समूह को वर्णमाला कहते हैं। हिन्दी वर्णमाला में
निम्नलिखित वर्ण या ध्वनियाँ प्रयुक्त होती है—
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ ऋ ए ऐ ओ औ स्वर - 11
अं (अनुस्वार), अः (विसर्ग) अयोगवाह - 2
क, ख, ग, घ, ङ
च, छ, ज, झ, ञ
ट, ठ, ड, ढ, ण स्पर्श व्यंजन - 25
त, थ, द, ध, न
प, फ, ब, भ, म
य, र, ल, व अंतःस्थ व्यंजन - 4
श,प, स,ह .ऊष्म व्यंजन - 4
क्ष, त्र, ज्ञ, श्र - संयुक्त व्यंजन - 4
ड़, द - हिन्दी के अपने व्यंजन - 2
वर्ण के भेद
वर्ण के दो भेद हैं
(1) स्वर वर्ण (Vowel)
(2) व्यंजन वर्ण (Consonant)
स्वर वर्ण
स्वर वर्ण स्वर उन वर्णों या ध्वनियों को कहते हैं, जिनका उच्चारण स्वतः होता है। जैसे
अ आ इ ई उ ऊ ऋ, ए, ऐ, ओ, औ इनकी संख्या 11 है।
ये व्यंजन वर्णों केउच्चारण में
खू+ अख
जैसे
क् + अ क ।
नोट (1) कुछ वैयाकरण 'ऋ' को स्वर नहीं मानते हैं। उनका तर्क है कि इसका उच्चारण प्रायः 'रि' जैसा होता है, लेकिन मात्रा की दृष्टि से 'ऋ' स्वर है। जैसे
ऋषभ, ऋषि, ऋण, ऋतु आदि। ('रि' व्यंजन ध्वनि)
कृपक, कृषि, पितृण, पृष्ठ आदि। ('. "स्वर की मात्रा)
(2) अं () और अः (:) हिन्दी वर्णमाला में 'अ' और 'अ'को स्वरों के साथ लिखने की परंपरा है, लेकिन 'अ' (अनुस्वार) और 'अ' (विसर्ग)
स्वर नहीं हैं। इन्हें 'अयोगवाह' कहा जाता है। (3) ऑ () – इसे 'अर्द्धचन्द्र' भी कहते है। इसका उच्चारण स्वर
की तरह होता है, लेकिन यह अंगरेजी की स्वर ध्वनि है। इसे गृहीत/ आगत स्वर ध्वनि कहते हैं। इसका प्रयोग प्रायः अँगरेजी के शब्दों में होता है। जैसे
ऑफिस, ऑफसेट, कॉलेज, नॉलेज, स्पॉट, स्टॉप आदि।
स्वर वर्ण के भेद
स्वर वर्ण के भेद मुख्यतः दो आधार पर किए जाते है
(1) उच्चारण में लगनेवाले समय और उच्चारण में लगनेवाले समय या उच्चारण काल के आधार पर स्वरों के
(2) जाति के आधार पर।
तीन भेद हैं (क) ह्रस्व स्वर (ख) दीर्घ स्वर और (ग) प्लुत स्वर।
(क) ह्रस्व स्वर - अ, इ, उ एवं ऋ स्वर है। इन्हें मूल स्वर भी कहते है। ये एकमात्रिक होते हैं तथा इनके उच्चारण में दीर्थ स्वर की अपेक्षा आया समय लगता है।
(ख) दीर्घ स्वर - आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ एवं औदीर्घ स्वर है। इनके उच्चारण में हरव स्वर की अपेक्षा दुगना समय लगता है। चूंकि इनमें दो मात्राओं का समय लगता है, अतः इन्हें द्विमात्रिक स्वर भी कहते हैं। दूसरे शब्दों में, इनमें दो स्वरों की संधि रहती है। जैसे
आ - अ + अ
ई - इ +इ
ऊ - उ + उ
ए - (अ+इ) / (अ + ई) / (आइ) / (आई)।
ऐ - (अ+ए) / (आ+ए) ।
ओ - (अ +3) / (आ+ 3) / (आ+ ऊ) ।
औ - (अ +ओ) / (आ + ओ) / (अ+ औ) / (आ + औ) ।
नोट-इन्हीं दीर्घ स्वरों में ए. ऐ, ओ तथा औ संयुक्त स्वर है।
हस्व स्वर और दीर्घ स्वर में लगनेवाले समय को इन शब्दों के उच्चारण से समझा जा सकता है
हस्व उच्चारण
अड़
दीर्घ उच्चारण
आड़
(ग) प्लुत स्वर।-जिस स्वर के उच्चारण मे दीर्घ स्वर से भी ज्यादा समय लगता है, उसे प्लुत स्वर कहते हैं किसी को देर तक पुकारने में या नाटक संवाद में इसका प्रयोग देखा जाता है वैदिक मन्त्रों में भी इसका प्रयोग पाया जाता है। इसे त्रिमात्रिक स्वर भी कहते है। इसके लिए (३) का अंक लगाया जाता है। जैसे
ओ३म् ।
जाति के आधार पर स्वर के दो भेद है
(क) सजातीय स्वर या सवर्ण और (ख) विजातीय स्वर या असवर्ण
सजातीय या सवर्ण अ आ इ ई उ ऊ आदि जोड़े आपस में सजातीयया सवर्ण कहे जाते हैं, क्योंकि ये एक ही उच्चारण ढंग या उच्चारण प्रयत्न से उच्चरित होते है। इनमें सिर्फ मात्रा का अंतर होता है।
विजातीय स्वर या असवर्ण-अ-इ, अ-ई, अ-उ, अ-ऊ, आ-इ, आ ई आदि जोड़े आपस में विजातीय स्वर या असवर्ण है, क्योंकि ये दो उच्चारण ढंग या उच्चारण प्रयत्न से उच्चरित होते हैं।
स्वरों के उच्चारण
स्वरों के उच्चारण प्रायः चार प्रकार से होते हैं
(1) निरनुनासिक (2) अनुनासिक (3) सानुस्वार और (4) विसर्गयुक्त
निरनुनासिक- यदि स्वरों का उच्चारण सिर्फ मुख से किया जाए, तो ऐसे स्वरों को निरनुनासिक स्वर कहा जाएगा। जैसेअ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
अनुनासिक यदि स्वरों का उच्चारण मुख और नाक (नासिका) से कियाजाए और उसमें कोमलता हो, तो ऐसे स्वरों को अनुनासिक स्वर कहा जाएगा।
जैसेअॅ, ऑ, ई. ई / ई. डॅ. ॐ, ऍ, पे/ ऐ. ओ/ओ. औं/औ निम्नलिखित तालिका से ये बातें और स्पष्ट हो जाती है
निरनुनासिक - अकड़ा ,आभी,सिगार,यहीं
अनुनासिक - अंकड़ा ,आधी ,सिंगार/सिगार
नोट-ध्यान रखें कि अनुनासिक के लिए चन्द्रबिंदु ( ) का प्रयोग होता है। लेकिन, जब अनुनासिक स्वर का चिह्न () शिरोरेखा पर लगता है, तब मजबूरन चन्द्रबिंदु ( ) के बदले बिंदु ( ) दिया जाता है। ऐसा, लेखन सुविधा हेतु किया जाता है। इस बिंदु () को आप पंचमाक्षर के लिए प्रयुक्त अनुस्वार न समझे। इसे इस तरह समझे
शिरोरेखा (सिर के ऊपर रेखा) पर चन्द्रबिंदु सिंगार, यही चलें हैं। लेखन सुविधा हेतु चन्द्रबिंदु के बदले बिंदु-सिगार, यही चले है।
सानुस्वार इसमे स्वरों के ऊपर अनुस्वार () का प्रयोग होता है। इसका उच्चारण नाक से होता है और उच्चारण में थोड़ी कठोरता होती । जैसे—
अंग, अंगद, अंगूर, ईंट, कंकण आदि ।
विसर्गयुक्त इसमे स्वरों के बाद विसर्ग (:) का प्रयोग होता है। इसका उच्चारण घोष ध्वनि- 'ह' की तरह होता है। संस्कृत में इसका काफी प्रयोग होता है। तत्सम शब्दों में इसका प्रयोग आज भी देखा जाता है। जैसे
अतः स्वतः प्रातः पय पान मनः कामना आदि।
स्वर-मात्रा एवं स्वर व्यंजन संयोग
"स्वर के संकेत-चिह्न को मात्रा कहते हैं।" स्वर के दस संकेत-चिह्न है. लेकिन 'अ' का कोई संकेत-चिह्न या गात्रा नहीं होती है। 'अ' स्वर जब किसी व्यंजन से मिलता है, तब उसका हल् चिह्न () लुप्त हो जाता है। जैसे
क् + अ -क ।
खू +अ - ख
बारहखड़ी
किसी व्यंजन के साथ स्वरों की मात्राऐं (ऋ को छोड़कर) अनुस्वार और विसर्ग के साथ लिखने को बारहखड़ी कहते है। जैसे
क ख का कि की कु कू के कै को कौ कं कः
खा खि खी खु खू खे खै खो खौ खं खः
इसी प्रकार अन्य व्यंजनों की बारहखड़ी लिखी जाती है।
व्यंजन वर्ण
व्यंजन वर्ण जिन वर्णों का उच्चारण किसी अन्य (स्वर) के सहारे होताहै, उन्हें व्यंजन वर्ण कहते हैं। दूसरे शब्दों में स्वर वर्ण की सहायता से जिस वर्ण का उच्चारण होता है, उसे व्यंजन वर्ण कहते हैं। जैसे
'अ' (स्वर) की सहायता से क, ख, ग आदि वर्णों का उच्चारण होता है, अतः क्, ख, ग, आदि व्यंजन वर्ण है। मूल व्यंजन वर्गों की कुल संख्या 33 है! क - ह ।
हल् संस्कृत में व्यंजन को हल कहते हैं, जबकि व्यंजनों के नीचे जो एक छोटी तिरछी लकीर दिखाई देती है, उसे हिन्दी में हल कहते हैं।
त् थ् द् ध् न्
हल् लगे व्यंजन अर्थात् 'स्वररहित व्यंजन' ही शुद्ध व्यंजन है। बोल-
चालकी भाषा में ऐसे व्यंजन को 'आधा व्यंजन' या 'आधा अक्षर' भी कहाजाता है।
त् थ् द् ध् न्
व्यंजन वर्ण के भेद
सभी व्यंजनों को मुख्यतः तीन भागों में बाँटा गया है
(1) स्पर्श व्यंजन (2) अंतःस्थ व्यंजन और (3) ऊष्म व्यंजन |
स्पर्श व्यंजन—जो व्यंजन कंठ, तालु, मूर्द्धा (तालु का ऊपरी भाग), ओठ, दाँत आदि के स्पर्श से बोले जाते है, उन्हें स्पर्श व्यंजन या स्पर्शी कहते हैं। इनकी संख्या 25 है। इन्हें 'वर्गीय व्यंजन' भी कहते हैं, क्योंकि ये पाँच वर्गों में बँटे हुए हैं। प्रत्येक वर्ग का नामकरण उनके प्रथम वर्ण के आधार पर किया गया है। जैसे
क-वर्ग (क, ख, ग, घ, ङ)- इनका उच्चारण कंठ के स्पर्श से होता है।
च-वर्ग (च, छ, ज, झ, ञ)." " तालु " " " "
ट-वर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण) " " मूर्द्धा " " " "
त-वर्ग (त, थ, द, ध, न) " " दंत " " " "
प-वर्ग (प, फ, ब, भ, म) " " ओष्ठ " " " "
अंतःस्थ व्यंजन - य र ल और व अंतःस्थ व्यंजन है। इनकी संख्या 4 है। ये स्वर और व्यंजन के बीच स्थित (अंतःस्थ) हैं। इनका उच्चारण जीभ, तालु, दाँत और ओंठो के परस्पर सटने से होता है, लेकिन कहीं भी पूर्ण स्पर्श नहीं होता। कुछ वैयाकरण 'य' और 'व' को अर्द्धस्वर भी कहते है।
ऊष्म व्यंजन —–श, ष, स और ह ऊष्म व्यंजन हैं। इनका उच्चारण रगड़या घर्षण से उत्पन्न ऊष्म (गरम) वायु से होता है। इसलिए इन्हें ऊष्म व्यंजनकहते हैं। इनकी संख्या 4 है। इनके अलावा कुछ और व्यंजन ध्वनियाँ है जिनकीचर्चा आवश्यक है। जैसे—
(क) संयुक्त व्यंजन या संयुक्ताक्षर और (ख) तल बिंदुवाले व्यंजन।
संयुक्त व्यंजन
परंपरा से क्ष त्र ज्ञ और श्र को हिन्दी वर्णमाला में स्थान दिया गया है, लेकिन ये मूल व्यंजन नहीं है। इनकी रचना दो व्यंजनों के मेल से हुई है.. इसलिए इन्हें संयुक्त व्यंजन या संयुक्ताक्षर कहते हैं। जैसे
क् +ष - क्ष
त् + र - त्र
ज्+ञ - ज्ञ
श+ र - श्र
तल बिंदुवाले व्यंजन
हिन्दी में कुछ ऐसे शब्द है जिनमें प्रयुक्त व्यंजन के नीचे बिंदु दिया जाता। है। ऐसे व्यंजन तल बिदुवाले व्यंजन कहलाते है। जैसे—
(1) हिन्दी में—इ और छ ।
(2) उर्दू (अरबी-फारसी) में क, ख, ग़, ज और फ़
(3) अँगरेजी में-ज़ और फ्र
इ और ढ़—ये हिन्दी के अपने व्यंजन हैं। संस्कृत में इनका प्रयोग नहीं होता है। ये ट-वर्गीय व्यंजन 'ड' और 'ढ' के नीचे बिंदु देने से बनते हैं। अतः इन्हें द्विगुण व्यंजन भी कहते हैं। शब्दों में इनका प्रयोग प्रायः अक्षरां के बीच या अंत में होता है, शब्द के शुरू में नहीं। जैसे
पढ़ना, ओढ़ना, लड़का, सड़क आदि । (अक्षरों के बीच में) बाढ़, आषाढ़, कड़ी, हथकड़ी आदि । - (शब्द का अंतिम अक्षर) नोट-मूल शब्द के शुरू में 'ढ' हमेशा बिंदुरहित आता है। जैसे ढकनी, ढाल, ढाँचा, ढोग, ढोलक, ढाई, ढकना आदि । अब इन दोनों शब्दों को देखें-पढ़ाई, उढ़कना आदि।
क., ख, ग़, ज़ और फ़-हिन्दी में प्रयुक्त अरबी-फारसी के कुछ
शब्दों में इनका प्रयोग ध्वनि-विशेष के लिए होता है। जैसे— क़लम, ख़राब, गरीब, राज, बाजार, फ़ौरन आदि ।
ज़ और फ़ अँगरेजी भाषा से आए कुछ शब्दों में, ध्वनि-विशेष के लिए इनका प्रयोग होता है। जैसे
इज़, ज़ीरो, फेल, फ़ास्ट आदि
वर्णों के उच्चारण स्थान
किसी भी वर्ण के उच्चारण के लिए मुख के विभिन्न भागों का सहारा लेना पड़ता है। मुख के जिस भाग (अवयव) से वर्ण का उच्चारण किया जाता है,वह भाग उस वर्ण का उच्चारण स्थान कहलाता है। उच्चारण-स्थान मुख्यत छह है
(1) कंठ
(2) तालु
(3) मूर्खा (तालु का ऊपरी भाग) (4) दंत (दाँत)
(5) ओष्ठ (ओठ) और
(6) नासिका (नाक)
उच्चारण स्थान के आधार पर सभी वर्णों का वर्गीकरण किया गया है, जो निम्नलिखित हैं
1. कंठ्य - जिनका उच्चारण कंठ से हो, वे कंठ्य वर्ण है। जैसे
अ, आ, क-वर्ग, विसर्ग तथा ह
2. तालव्य -जिनका उच्चारण तालु से हो, वे तालव्य वर्ण है। जैसे इ, ई, च-वर्ग, य तथा श
3. मूर्द्धन्य - जिनका उच्चारण मूर्द्धा से हो, वे मूर्द्धन्य वर्ण है। जैसे
ॠ, ट-वर्ग, र तथा प
4. दंत्य – जिनका उच्चारण दाँत से हो, वे दत्य वर्ण है। जैसे त-वर्ग, ल और स14
सहज हाईस्कूल हिन्दी व्याकरण और रचना
5. ओष्ठ्य - जिनका उच्चारण ऑठ से हो, वे ओष्ठ्य वर्ण है। जैसे उ, ऊ तथा प वर्ग।
6. अनुनासिक - जिनका उच्चारण मुख और नाक से हो, वे अनुनासिक वर्ण है। जैसे- पंचमाक्षर (ङ, ञ, ण, न, म) और अनुस्वार चन्द्रव
7. कंठ-तालव्य -जिनका उच्चारण कंठ और तालु से हो, वे कंठ-तालव्य वर्ण है। जैसे—ए तथा ऐ 8. कंठौष्ठ्य–जिनका उच्चारण कंठ और ओष्ठ से हो, वे कंठौष्ठ्य वर्ण
है। जैसे—ओ तथा औ
9. दंतौष्ठ्य–जिसका उच्चारण दंत और ओष्ठ से हो, वह दंतौष्ठ्य वर्ण है। जैसे—व
अल्पप्राण और महाप्राण
श्वास-वायु की मात्रा के आधार पर व्यंजन के दो भेद है
(1) अल्पप्राण और (2) महाप्राण।
अल्पप्राण - जिन वर्णों के उच्चारण में श्वास (प्राण) वायु की मात्रा कम
(अल्प) होती है, उन्हें अल्पप्राण वर्ण कहते हैं। दूसरे शब्दों में, जिन ध्वनियो के उच्चारण में 'हकार' की ध्वनि नही सुनाई पड़ती है, उन्हें अल्पप्राण कहते हैं। ये हैं
(1) प्रत्येक वर्ग का प्रथम, तृतीय और पंचम वर्ण तथा
(2) अंतःस्थ व्यंजन
महाप्राण - जिन वर्णों के उच्चारण में श्वास-वायु की मात्रा अधिक है है, अर्थात् जिनके उच्चारण में 'हकार' की ध्वनि सुनाई पड़ती है, उन्हें महाप्र कहते हैं। ये हैं
(1) प्रत्येक वर्ग का द्वितीय और चतुर्थ वर्ण तथा (2) ऊष्म व्यंजन |
घोष और अघोष
संपूर्ण स्वर और व्यंजन वर्णों को स्वरतंत्रियों में कंपन के आधार प भागों में बाँटा गया है
(1) घोष या सघोष और (2) अघोष ।
घोष या सघोष जिन वर्णों के उच्चारण में है, उन्हें घोष या सघोष कहते हैं। जैसे—
(1) सभी स्वर,
स्वरतंत्रियों में कंपन
(2) प्रत्येक वर्ग का तृतीय, चतुर्थ और पंचम तथा
(3) अंतःस्थ और ह इन्हें घेरे के अंदर दिखलाया गया है
सभी स्वर-अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ,
अघोष-जिन वर्णों के उच्चारण में स्वस्तंत्रियों में कंपन नहीं होता है, उन्हें अघोष कहते है। जैसे
(1) प्रत्येक वर्ग का प्रथम और द्वितीय (2) श प और स
व्यंजन-गुच्छ एवं द्वित्व
व्यंजन-गुच्छ - यदि किसी शब्द में दो तीन व्यंजन लगातार हो और उनके बीच कोई स्वर न हो, तो उस व्यंजन-समूह को व्यंजन-गुच्छ कहते हैं। जैसे अच्छा, क्यारी, क्लेश, स्फूर्ति, स्पष्ट, स्वप्न, मत्स्य, उज्ज्वल, स्वास्थ्य आदि।
उदाहरण:
अच्छा - अ + च् + छ् +आ (च, छ-दो व्यंजनों का गुच्छ)
मत्स्यम् - अ + त् + स + य् + अ (तू, स. यू-तीन व्यंजनी का गुच्छ)
कभी-कभी एक ही शब्द में एक से अधिक व्यंजन-गुन्छ पाए जाते है। जैसे-स्वास्थ्य, च्यवनप्राश, ज्योत्स्ना ध्वस्त आदि।
उदाहरण:
स्वास्थ्य [स+व्+ आ +स् + थ् + य् + अ (दो व्यंजन-गुच्छ)
द्वित्व - यदि दो समान व्यंजनों के बीच कोई स्वर न हो तो वह संयुक्तव्यंजन या व्यंजन-गुच्छ द्वित्व कहलाता है।
जैसे— अड्डा / अड्डा, पट्टी / पट्टी, धक्का / धक्का, सत्ता / सत्ता, पत्ती / पत्ती, कुत्ता / कुत्ता आदि।
उपर्युक्त शब्दों में मोटे अक्षर प्रत्येक शब्द में दो-दो बार आए है। इनको 'द्वित्व' कहते हैं। उदाहरण:
ध् + अ + क् धक्का अ आ (क् + क् द्वित्व है)
नोट-वर्गीय व्यंजन के दूसरे अथवा चौथे वर्णों को द्वित्व (दो बार) के रूप में नहीं लिखा जाता है, अर्थात् दो महाप्राण आपस में संयुक्त नहीं होते है। जैसे—
(ख-ख), (घ-घ), (छ-छ), (झ-झ), (ठ-ठ), (ढ-ढ), (ध-थ), (घ-ध), (फ
फ) और (भ-भ) ।
उदाहरण:
अशुद्ध-मख्खन, बघ्घी, मछ्छर, झझझर, चिट्ठी, बुढ्ढा, पथ्थर आदि। शुद्ध—मक्खन, बग्धी, मच्छर, झज्झर, चिट्ठी, बुड्ढा, पत्थर आदि ।
अनुस्वार और पंचमाक्षर
ङ्, ञ, ण्, न् और म् अनुनासिक व्यंजन हैं। इन्हें 'पंचमाक्षर' भी कहते हैं। ये जब अपने वर्ग के व्यंजन से हल् रूप में जुड़ते हैं, तब लेखन सुविधा हेतु इन्हें अनुस्वार (') में बदल दिया जाता है। जैसे
क-वर्ग के साथ (ङ्) – अङ्क/अङ्क = अंक पशु/पख = पंख
अङ्ग/अङ्ग = अंग जङ्घा / जङ्घा जंघा पञ्च = पंच पञ्छी = पंछी झञ्झट = झंझट
च-वर्ग के साथ (ञ)- ट-वर्ग के साथ (ण) घण्टा = घंटा। कण्ठ = कंठ दण्ड दंड। ढण्ढ़ार ढंढ़ार।
त-वर्ग के साथ (न्) पन्त पंत पन्थ पंथ बन्द = बंद | अन्धा अंधा
प-वर्ग के साथ (म्) – कम्पकंप। जम्फर जंफर ।
अम्बा अंबा दम्भ = दंभ
नोट (1) अनुस्वार का प्रयोग ज्यादा प्रचलित एवं मान्य है। फिर भी आप किसी व्यंजन के साथ पंचमाक्षर संयुक्त करना चाहते हो तो वर्ग का हमेशा खयाल रखें। एक वर्ग के साथ दूसरे वर्ग के पंचमाक्षर को संयुक्त न करे। जैसे— (अञ्क/अण्क/अन्क), (डन्डा/डञ्डा) आदि लिखना गलत है।
(2) लेकिन किसी शब्द में दो भिन्न पंचमाक्षर या किसी पंचमाक्षर का द्वित्व हो, तो अनुस्वार का प्रयोग न करें। उसमें पंचमाक्षर का प्रयोग करें। जैसे— वाङ्मय, जन्म, निम्न, मृण्मय आदि। (भिन्न पंचमाक्षर) उन्नति, सम्मति, अक्षुण्ण आदि। (द्वित्व पंचमाक्षर) (3) जिन शब्दों के पहले सम् उपसर्ग लगता है, वहाँ 'म्' के स्थान पर
अनुस्वार का प्रयोग करे। जैसे—
सम् + यम = संयम
सम् + लाप = संलाप
सम् + शय = संशय
सम् +रक्षण संरक्षण
सम् + वाद = संवाद
सम् +सार- संसार
अयोगवाह
अनुस्वार और विसर्ग को संस्कृत में अयोगवाह माना गया है, क्योंकि ये दोनों न तो स्वर है और न व्यंजन पं. किशोरीदास वाजपेयी ने सच ही कहा है. "इनकी स्वतंत्र गति नहीं, इसलिए ये स्वर नहीं है और व्यंजनों की तरह से स्वरों के पूर्व नहीं पश्चात् आते हैं, इसलिए ये व्यंजन भी नहीं हैं।" दूसरे शब्दों में, स्वर और व्यंजन में जो-जो गुण है, वे गुण इनमें नहीं। इसलिए इन दोनों ध्यनियों को अयोगवाह कहा जाता है, अर्थात् ये न तो स्वर से योग है और में व्यंजन से अयोग, फिर भी अर्थ का निर्वाह (बाह) करते हैं, अतः 'अयोगवाह' है।
अनुतान (Intonation)
जब कोई व्यक्ति कुछ बोलता है, तब वह यों ही धाराप्रवाह बोलता नहीं जाता है, बल्कि किसी शब्द या वाक्य को बोलने के समय अपने भावो (मुख, दुःख, आश्चर्य, खीझ आदि) के अनुरूप शब्द-ध्वनि को ऊपर-नीचे उतारता चढ़ाता है। इसी उतार-चढ़ाव या आरोह-अवरोह अथवा ऊँची-नीची स्तर (ध्वनि) लहरी को 'सुर-लहर' या सुर का अनुतान कहते हैं। जैसे
'अच्छा' शब्द को विभिन्न अनुतान में बोला जा सकता है
अच्छा । सामान्य कथन (अनुतान समान है।)
अच्छा ? प्रश्नवाचक (अनुतान जोरदार है।)
अच्छा! - आश्चर्य (अनुतान अंत में लंबा है।)
इसी प्रकार वाक्य में भी भावानुसार अनुतान का प्रभाव देखा जाता है।
जैसे वह जा रहा है। (अनुतान सभी अक्षरों में समान है।)
वह जा रहा है ? (अनुतान बीच में उठता है और अंत में गिरता है।)
वह जा रहा है। (अनुतान अंत में उठकर लंबा हो जाता है।)
बलाघात या स्वराघात
'बलाघात' शब्द, बल + आघात से बना है। शब्द उच्चारण के समय किसी खास स्वर पर बल देना, बलाघात या स्वराघात कहलाता है । इसके तीन भेद (1) वर्ण या अक्षर बलाघात, (2) शब्द-बलाघात और (3) वाक्य-बलाघात ।
वर्ण या अक्षर बलाघात किसीसवर्ण या अक्षर पर पड़नेवाले
बलाघात को वर्ण या अक्षर बलाघात कहते हैं। जैसे
(क) चला (वह स्कूल से चला) - 'च' पर बलाघात ।
(ख) चला (तू गाड़ी चला) - 'ला' पर बलाघात है।
शब्द-बलाघात वाक्य में प्रयुक्त किसी खास शब्द पर विशेष बल देना, शब्द-बलाघात कहलाता है। इससे अर्थ में अंतर आता है। जैसे (क) तुम नहीं पढ़ोगे। - (किसी शब्द पर विशेष बल नहीं है) (ख) तुम नहीं पढ़ोगे ? – ('नहीं' शब्द पर विशेष बलाघात है।)
वाक्य-बलाघात शब्द-बलाघात से वाक्य-बलाघात अधिक अर्थपूर्ण
होता है। जैसे (क) आज मैं गीता पढ़ेगा।
(कल किसी अन्य व्यक्ति ने गीता पढ़ने का काम किया था।)
(ख) आज मैं गीता पढूँगा।
(कल कुछ और पढ़ा था. आज गीता पहुँगा ।)
संगम
संगम को 'संहिता' भी कहते हैं। उच्चारण करते समय केवल स्वरों और व्यंजनों के उच्चारण, उनकी दीर्घता, उनमें संयोग और बलाघात का ध्यान नहीं रखना पड़ता, बल्कि पदीय सीमाओं का भी खयाल रखना पड़ता है। दूसरे शब्दों में, किस शब्द (पद) के बाद विराम रखना है या नहीं, अर्थात् दो पदो के बीच मौन विराम (वगैर विराम चिह्न के) को 'संगम' कहते हैं। इससे भी अर्थ में अंतर आता है। 'संगम' को समझने के लिए (+) चिह्न दिया गया है।
(क) उसके भाई का रण में देहांत हो गया।
का + रण)
(यहाँ 'का' और 'रण' के बीच थोड़ा ठहरना है।) इसी ठहराव या
विराम को संगम कहते हैं। (ख) उसके भाई इसी कारण नहीं आए।
- (ग) मरुभूमि का मैदान जल सा दिखाई देता है - (जल + सा)
(कारण)
(यहाँ भी 'जल' और 'सा' के बीच मौन विराम है।)
(घ) मेरे विद्यालय में आज जलसा (सभा) है।
(ङ) जा पानी ला ।
(च) जापानी ला
(जलसा)
(जा+पानी)
-(जापानी)
वर्ण, ध्वनि, लिपि और अक्षर
वर्ण और ध्वनि कभी-कभी वर्ण के लिए ध्वनि या ध्वनि के लिए वर्ण शब्द का प्रयोग होता है, फिर भी दोनों में अंतर है।
"मुँह के विभिन्न अवयवों या उच्चारण स्थान से जो वर्ण या वर्णों के समूह उच्चरित होते है, उन्हें ध्वनि कहते है।" उच्चरित ध्वनि अर्थपूर्ण होतो व्याकरण की दृष्टि से ध्वनि है और यदि उसका कोई अर्थ न हो तो वह निरर्थक ध्वनि' कहलाती है। लिखते समय वर्णों को जोड़कर शब्द बनाया जाता है और शब्दों से वाक्य वर्णों के सही मेल से 'सार्थक शब्द बनते हैं, अगर का सही मेल न हो, तो 'निरर्थक शब्द बनते हैं। ध्वनि मुँह द्वारा उन्मरित होती है और कान द्वारा सुनी जाती है। वर्ण किसी संकेत द्वारा हाथ से लिखा जाता है या किसी यंत्र द्वारा छापा जाता है।
स्पष्ट है कि मौखिक भाषा की सबसे छोटी इकाई 'ध्वनि' है और लिखित भाषा की सबसे छोटी इकाई 'वर्ण'। कभी-कभी ध्वनि समान होते हुए भी उसके अर्थ और लिपि में अंतर होता है। जैसे—हिन्दी की 'कम' ध्वनि और अंगरेजी की 'come' ध्वनि में ध्वनिगत समानता है, लेकिन अर्थ और लिपि में अंतर है।
लिपि-भाषा के मुख्यतः दो रूप हैं—मौखिक और लिखित मौखिक भाषा में ध्वनियाँ मुख द्वारा उच्चरित होती है। यदि उन उच्चरित ध्वनियों को किया चिह्न या संकेत द्वारा मूर्त रूप दें, तो वह लिखित भाषा (लिखित रूप) "लिपि कहलाएगी। अर्थात् "भाषा-ध्वनियों को लिखकर प्रकट करने हेतु निश्चित कि गए संकेतों या चिह्नों को लिपि कहते हैं।"
हिन्दी जिस लिपि में लिखी जाती है, उसे 'देवनागरी लिपि कहते हैं। इस लिपि में संस्कृत, मराठी और नेपाली भाषाएँ लिखी जाती है। पंजाबी भाष 'गुरुमुखी' में तथा अँगरेजी 'रोमन' लिपि में लिखी जाती है। उर्दू और कश्मीरी की लिपि 'फारसी' कहलाती है।
संसार की अधिकांश लिपियाँ बाएँ से दाएँ लिखी जाती है। जैसे देवनागरी, गुरुमुखी, रोमन आदि। इसके विपरीत फारसी लिपि दाएँ बाएं लिखी जाती है। चीनी-जापानी भाषाएँ तो ऊपर से नीचे लिखो जाती है।
यहाँ कुछ प्रमुख भाषाओं की लिपियों को दिखलाया गया है। भारत एक महान् देश है।
(हिन्दी)
भारत खेषु भरान 21 हे (गुजराती) ভারত ক घহান দেশ (बँगला) India is a great country. (अँगरेजी)
अग्छ दिन भगह रेम । (पंजाबी)
अक्षर कुछ वैयाकरण के अनुसार जिसका क्षर न हो, वह 'अक्षर' है। जैसे—अ, आ, क्, ख् आदि। अर्थात्-वर्ण ही अक्षर है।
FAQ
वर्ण / varn किसे कहते हैं ?
वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते हैं, जिसके खंड या टुकड़े नहीं हो सकते।
जैसे - अ, आ, इ, ई, ओ, कू, ख, च, छ, यू. र्, ल् आदि।
वर्णमाला किसे कहते हैं ?
वर्णों के क्रमबद्ध समूह को वर्णमाला कहते हैं। हिन्दी वर्णमाला में
निम्नलिखित वर्ण या ध्वनियाँ प्रयुक्त होती है—
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ ऋ ए ऐ ओ औ स्वर - 11
अं (अनुस्वार), अः (विसर्ग) अयोगवाह - 2
क, ख, ग, घ, ङ
च, छ, ज, झ, ञ
ट, ठ, ड, ढ, ण स्पर्श व्यंजन - 25
त, थ, द, ध, न
प, फ, ब, भ, म
य, र, ल, व अंतःस्थ व्यंजन - 4
श,प, स,ह .ऊष्म व्यंजन - 4
क्ष, त्र, ज्ञ, श्र - संयुक्त व्यंजन - 4
ड़, द - हिन्दी के अपने व्यंजन - 2
स्वर वर्ण / varn किसे कहते हैं ? इनकी संख्या कितनी है ?
स्वर वर्ण स्वर उन वर्णों या ध्वनियों को कहते हैं, जिनका उच्चारण स्वतः होता है। जैसे
अ आ इ ई उ ऊ ऋ, ए, ऐ, ओ, औ इनकी संख्या 11 है।
व्यंजन वर्ण किसे कहते हैं ?
व्यंजन वर्ण जिन वर्णों का उच्चारण किसी अन्य (स्वर) के सहारे होताहै, उन्हें व्यंजन वर्ण कहते हैं। दूसरे शब्दों में स्वर वर्ण की सहायता से जिस वर्ण का उच्चारण होता है, उसे व्यंजन वर्ण कहते हैं। जैसे
'अ' (स्वर) की सहायता से क, ख, ग आदि वर्णों का उच्चारण होता है, अतः क्, ख, ग, आदि व्यंजन वर्ण है। मूल व्यंजन वर्गों की कुल संख्या 33 है! क - ह ।